अंधेरा! अंधेरा! चिलाने से अंधेरा दूर नहीं होता,उसे दूर करने के लिए दीपक जलाना ही पड़ता है। उसी प्रकार किसी भी समस्या का समाधान करने के लिए उसके मूल को समझना होगा। उसके लिए एक कारगर रणनीति बनानी पड़ती है। वर्तमान में पंजाब में नशे का दानव भस्मासुर का रूप धारण कर चुका है समाज से सरोकार रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति चिंतित है कि पंजाब अब पांच दरियों की धरती नहीं है बल्कि इस धरती पर एक अन्य दरिया नशे का बह रहा है। एक तरफ पंजाब की जवानी और दूसरी तरफ पंजाब का पानी खतरे में है। विभिन्न राजनीतिक दलों व सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा नशे के विरुद्ध एक लड़ाई लड़ने का शंखनाद किया जा चुका है। मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरी जा रही हैं। नशे समाप्त करने के बड़े-बड़े दावे अपने अपने स्तर पर किए जा रहे हैं।
नशों का पंजाब की धरती से समूल नाश करने के लिए सर्वप्रथम नशों की आपूर्ति रोकने का काम सरकार का है। सरकार पूरी ईमानदारी से अगर उचित कदम उठाती है तो निश्चित रूप से पंजाब की पवित्र धरती पर एक चुटकी भर नशा भी नहीं पहुंच सकता। पंजाब में पिछले कुछ हफ्तों के दौरान नशा तस्करों के विरुद्ध उत्तर प्रदेश के मॉडल को अपनाते हुए पुलिस की बुलडोजर कार्यवाही निसंदेह उनमे एक खौफ पैदा कर रही है।
दूसरे स्तर पर जो लोग नशे की लत का शिकार हो चुके हैं उनका सही इलाज कराने के लिए भी सरकारी तंत्र ही एकमात्र कारगर साधन सिद्ध हो सकता है। उन्हें नशा मुक्त केंद्रों में उचित चिकित्सा परामर्श के साथ-साथ ध्यान, योग,खेल आदि गतिविधियों के माध्यम से उनके तन के साथ-साथ मन को भी सबल बनाया जाना चाहिए। ये नशा मुक्ति केंद्र वास्तव में नशे के शिकार युवाओं के पुनर्वास का साधन बने, ना कि सिर्फ खानापूर्ति।
प्रसंग है कि चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त के प्रधानमंत्री चाणक्य के पांव में एक यात्रा के दौरान रास्ते में लगी एक कंटीली झाड़ी का कांटा चुभ जाता है जिसके कारण उन्हें असहनीय पीड़ा होती है। उनका एक सेवक उस झाड़ी को काटने की बात करता है परंतु महाज्ञानी रणनीतिकार चाणक्य किसी पास के घर से मीठी छांछ मंगवाते हैं और उस झाड़ी की जड़ में डाल देते हैं और कुछ ही समय में चींटियां वहां आती हैं और उस झाड़ी की जड़ का समूल नाश कर देती हैं। चाणक्य ने अपना सामाजिक दायित्व समझते हुए यह कार्य किया तांकि भविष्य में उस झाड़ी का कोई भी कांटा किसी को कष्ट नहीं दे सके। पंजाब की जवानी को बचाने के लिए भविष्य में कोई भी युवा और कोई भी परिवार नशे से बर्बाद ना हो। इसका दायित्व संपूर्ण समाज का है हर उस व्यक्ति का है जिसे समाज ने थोड़ा बहुत भी कुछ दिया है। इस समस्या के समाधान के लिए जो भी विभिन्न स्तर पर प्रयास किया जा रहे हैं निश्चित रूप से है पर उनका कोई सार्थक परिणाम मिले यह भी जरूरी है।
नशा मुक्ति चेतना संघ पिछले दो वर्ष से पंजाब के प्रत्येक क्षेत्र में नशा मुक्त पंजाब अभियान के अधीन नशों से स्वतंत्रता के लिए जन जागरूकता अभियान चला रहा है। इस संस्था के प्रांत सहसंयोजक होने के साथ-साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता और अध्यापन के क्षेत्र से 25 वर्षों से जुड़े होने के कारण मूझे इस समस्या को धरातल पर जाकर घर-घर और गांव-गांव जाकर समझने का अवसर मिला। मेरा मन इस समस्या को लेकर चिंतित होने के साथ-साथ लगातार चिंतन भी करता रहता है। मन व्यथित रहता है कि पंजाब शूरवीरों की धरती जिसने न सिर्फ आजादी की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई बल्कि पंजाब के युवा भारतीय सेना में अपने शौर्य और पराक्रम के लिए जाने जाते हैं। अब वर्तमान में हालात कैसे हैं हम सब जानते हैं एक सोची समझी साजिश के अधीन विदेशी ताकते पंजाब की जवानी को नकारा करने के लिए पंजाब में नशों का जाल फैल चुकी हैं। पंजाब के युवा को नशेड़ी और लाचार बनाकर नशों द्वारा उनकी हत्या की जा रही है और पंजाब की छवि को उड़ते पंजाब के रूप में दुनिया में पेश किया जा रहा है।
नशा निश्चित रूप से एक सामाजिक समस्या है। युवाओं और बच्चों में इस संबंधी जागरूकता का अभाव है। इसी जागरूकता के अभाव के कारण वे नशे की लत में अनजाने में फंस जाते हैं। आज समाज में संयुक्त परिवार की अपेक्षा एकल परिवार हैं। इन परिवारों में माता-पिता कमाई में लगे हुए हैं। बच्चों और युवाओं का मार्गदर्शन करने के लिए उनके पास समय ही नहीं बचता। राजनेता अपनी राजनीति चमकाने में और अपना वोट बैंक बचाने में लगे हैं और एक साधारण नागरिक को लगता है कि अकेला मैं क्या कर सकता हूं। अरे भाई! आग लगी है उसे अपनी समर्था के अनुसार बुझाने का प्रयास तो करो। कम से कम इतिहास में आपको आग लगाने वालों की श्रेणी में नहीं, आग बुझाने वालों की श्रेणी में याद किया जाए।
दुष्यंत की पंक्तियों "सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए" याद कर भावुक हो जाता हूं। सोचता रहता हूं कि ऐसा क्या करूं जिससे मेरे पंजाब की सूरत बदल जाए। चिंतन करते-करते एक विचार ने जन्म लिया कि पंजाब की सूरत बदलने के लिए एक रणनीति के रूप में समाज में संवाद कार्यक्रम का आरंभ किया जाना चाहिए। इसके माध्यम से निश्चित रूप से सकारात्मक नतीजे मिल सकते हैं।
क्या है संवाद -किसी भी युद्ध को तभी जीता जा सकता है जब उस युद्ध को लड़ने के लिए एक कारगर रणनीति हो। नशों से स्वतंत्रता की लड़ाई जो अमृतकाल में समाज के प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा नशों से आजादी के योद्धा के रूप में लड़ी जानी है उसके लिए भी एक विशेष रणनीति अपनानी होगी और उस रणनीति को ही मैंने संवाद का नाम दिया हैं। संवाद का अर्थ है- सिस्टमैटिक एक्टिव मीटिंग्स इन विलेजज अगेंस्ट ड्रग्स। पंजाब एक ग्रामीण प्रधान राज्य है। गांव गांव में नशों का जाल बिछा हुआ है इस जाल को समाप्त करने के लिए पहल भी गांव-गांव जाकर ही करनी होगी। इस राजनीति के अधीन समाज की चिंता करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा गांव गांव जाकर एक सुनियोजित ढंग से नशों के विरुद्ध क्रियाशील बैठकों का आयोजन किया जाना चाहिए। नशों के विरुद्ध क्रियाशील सुनियोजित बैठकों के स्वरूप संबंधी मेरा मानना है कि मात्र दिखावे फोटो खिंचवाने के लिए के लिए कार्य नहीं किया जाना चाहिए। समाज की चिंता करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को क्रियाशील भूमिका निभानी है। परिवार, शैक्षणिक संस्थाएं, गांव की पंचायतें समाज की मूल संस्थाएं हैं। नशों के विरुद्ध सुनियोजित क्रियाशील बैठकों में सरपंच, पंच, प्रत्येक परिवार से प्रमुख सदस्य,युवा, विद्यार्थी, शिक्षक, उस गांव में रहने वाले सरकारी कर्मचारी, गांव की सामाजिक संस्थाओं क्लबों के सदस्य,समाज में प्रभाव रखने वाले अन्य व्यक्तियों को एक साथ बैठना होगा। नशे से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर खुलकर चर्चा करनी होगी। तत्पश्चात वह चर्चा प्रत्येक परिवार में, धर्मशालाओं,गुरुद्वाराओं, मंदिरों और सामाजिक धार्मिक कार्यक्रमों में हो। चारों तरफ से इस भयानक विकराल समस्या पर हमला करना होगा। तभी इस समस्या का समूल नाश संभव है। समाज में प्रत्येक जिम्मेवार व्यक्ति को युवाओं का प्रहरी व मार्गदर्शक बनना होगा। कोई भी व्यक्ति मूक दर्शक बन बनकर नहीं रह सकता सभी को क्रियाशील होना ही पड़ेगा।
और अंतिम कदम के रूप में युवाओं को गुरुवाणी और श्रीभागवतगीता की शरण लेनी होगी,इनको जीवन में आत्मसात करते हुए आगे बढ़ना होगा।
लेखक-डा.अमित कांसल
प्रांत सह-संयोजक, नशा मुक्ति चेतना संघ
पूर्व निदेशक, नेशनल हाइड्रो पावर कॉरपोरेशन, विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार