सरकारों ने भुला दिया पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी
ऊं जय जगदीश हरे’: हिंदू धर्मावलंबियों के लिए कंठ के हार जैसी यह आरती आपने कभी न कभी जरूर गाई या सुनी होगी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि लोकप्रियता में अपना सानी न रखने वाली इस आरती की रचना किसने की?
जानते हैं तो बहुत अच्छी बात है लेकिन नहीं जानते तो भी अपराधबोध का शिकार होने की जरूरत नहीं. आपकी तरह और भी बहुत से लोग यह बात नहीं जानते. लेकिन इसमें उनका दोष नहीं. दोष उस सामाजिक कृतघ्नता का है, जिसने इसके सर्जक श्रद्धाराम फिल्लौरी द्वारा की गई देश समाज और साहित्य की बहुआयामी सेवाओं को तो भुला ही दिया है, उनकी यादों तक को विस्मृति के गर्त मे सुला दिया है.
सनातन धर्म प्रचारक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध उपन्यासकार पं. श्रद्धा राम फिल्लौरी का इतिहास में प्रमुख स्थान है। सुप्रसिद्ध आरती ‘ओम जय जगदीश हरे’ की रचना कर उन्होंने सर्वाधिक लोकप्रियता हासिल की। इनका जन्म जालंधर के फिल्लौर में प्रसिद्ध ज्योतिषी जयदयालु जी के घर में 30 सितम्बर, 1837 ई. को हुआ।
धार्मिक संस्कार इन्हें बचपन में ही विरासत में मिले थे। संस्कृत, हिन्दी, फारसी, पंजाबी भाषाओं और ज्योतिष का ज्ञान पं. श्रद्धा राम जी ने बाल्यावस्था से ही प्राप्त करना आरंभ कर दिया तथा बड़ा होते-होते इनमें पारंगत हो गए। इनका विवाह महताब कौर से हुआ।
पंडित जी ने सर्वप्रथम पंजाबी भाषा में अपनी पहली पुस्तक ‘सिखां दे राज दी विथया’ लिखी, जिससे वह प्रसिद्ध हो गए। इस पुस्तक में उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य के पतन और उसके बाद अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार का बारीकी से वर्णन किया था।
अंग्रेज सरकार ने उस समय की आई.सी.एस. परीक्षा के कोर्स में पं. जी की इस प्रसिद्ध पुस्तक को शामिल किया था।
अपने क्रांतिकारी विचारों को देश तथा समाज में फैलाने व अंग्रेजी दासता का प्रबल विरोध इन्होंने अपने लेखन के माध्यम से शुरू किया। पं. श्रद्धा राम फिल्लौरी ही थे, जिन्होंने अपने लेखन में सर्वप्रथम अंग्रेजों को ‘फिरंगी’ कहकर संबोधित किया तथा इससे वह अंग्रेजों की आंख की किरकिरी बन गए और उन्हें फिल्लौर से निष्कासित भी किया गया। वह लाहौर, दिल्ली व अमृतसर इत्यादि स्थानों पर भी रहे तथा उन्होंने अपनी कलम को रुकने नहीं दिया।
1870 ई. में इन्होंने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना ‘ओम जय जगदीश हरे’ लिखी, जिसने इन्हें भारतवर्ष ही नहीं, विश्व भर में प्रसिद्ध कर दिया। पंडित जी जहां भी जाते, अपनी इस रचना को लोगों के बीच गाकर सुनाते और सभी इनके कायल हो जाते। इस आरती के बोल लोगों की जुबान पर ऐसे चढ़े कि इतने अर्से के बाद भी इसका जादू सबके दिल-दिमाग पर कायम है। भक्ति रस से सराबोर इस आरती को पढ़ और गा कर एक अलौकिक आनंद तथा भक्ति की सहज अनुभूति प्राप्त होती है।
हिन्दी के सर्वप्रथम उपन्यासकार होने का श्रेय भी पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी जी को ही जाता है। इन्होंने 1877 में हिन्दी का सर्वप्रथम उपन्यास ‘भाग्यवती’ लिखा, जो काफी प्रसिद्ध हुआ तथा हिन्दी साहित्य के अग्रणी लेखकों में फिल्लौरी जी भी शामिल हो गए। दो दर्जन के लगभग रचनाएं लिखकर इन्होंने पंजाबी तथा हिन्दी दोनों भाषाओं को समृद्ध किया तथा हर क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी तथा हर क्षेत्र में अपना नाम कमाने वाले पं. श्रद्धा राम फिल्लौरी जी का 21 जून, 1881 ई. को लाहौर में निधन हुआ लेकिन अपनी प्रसिद्ध रचनाओं विशेषकर आरती ‘ओम जय जगदीश हरे’ के कारण पंडित जी का नाम साहित्य और समाज में सदा के लिए अमर हो गया।
आज भी उनकी और से बनाया गया श्री ज्ञान सथल मंदिर चौक पासी में है जहाँ पर आस पास की औरते सुबह शाम आरती करती है पर लगता है हमारे समाज ने उनको भुला दिया है विश्व भर में उनके द्वारा लिखी आरती गायी जाती है पर आज तक किसी बी सरकार ने उनके जनम स्थान को समारक बनाने की कोशिश नहीं शहर के लोगो की लम्बे समय से मांग है फिल्लौर रेलवे स्टेशन का नाम पंडित जी के नाम पर रखा जाये और गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी में उनके नाम चेयर साथपित की जाये .
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Gautam Jalandhari (Editor)