*राज्यसभा में बजट चर्चा के दौरान सांसद राघव चड्ढा बने मिडिल क्लास की आवाज, रेलवे और प्रवासियों की समस्याओं पर भी उठाए सवाल*

Feb12,2025 | Jagrati Lahar Bureau | New Delhi


- सांसद राघव चड्ढा ने मिडिल क्लास के कंकाल पर पांच बिलियन डॉलर की इकॉनमी बनाना चाहती है सरकार
- बोले- मिडिल क्लास को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझती है सरकार
- संसद में रखी बुजुर्गों की सब्सिडी बहाल करने की मांग, रेलवे में बढ़ते किराए और घटती सुविधाओं पर उठाए सवाल।
- कहा- ट्रंप की नीतियों से खतरे में पड़ीं लाखों नौकरियां, भारत में और बढ़ सकती है बेरोजगारी दर
- राघव चड्ढा बोले- रेल मंत्री को रेल से ज्यादा रील्स में है दिलचस्पी, यात्रियों की असल समस्याओं पर नहीं है कोई ध्यान

नई दिल्ली, 12 फरवरी, 2025: मंगलवार को राज्यसभा में बजट चर्चा के दौरान आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने सरकार की नीतियों पर तीखा हमला बोला और मिडिल क्लास, रेलवे, और प्रवासी भारतीयों की समस्याओं को खुलकर सामने रखा। उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि सरकार मिडिल क्लास को आत्मा-रहित संरचना समझती है, जिसकी हड्डियों के ढेर पर चढ़कर पांच बिलियन डॉलर की इकॉनमी बनाना चाहती है। 

मिडिल क्लास की हो रही अनदेखी, अमीरों के कर्जे हो रहे माफ  

राघव चड्ढा ने अपने भाषण में कहा, "गरीबों को सब्सिडी और स्कीम्स मिल जाती हैं, अमीरों के कर्ज माफ कर दिए जाते हैं, लेकिन मिडिल क्लास को कुछ नहीं मिलता। सरकार सोचती है कि मिडिल क्लास के पास कोई सपने और अरमान नहीं हैं। इसे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझा जाता है, जिसे बार-बार निचोड़ा जाता है।"

उन्होंने कहा कि अगर अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, तो मांग भी बढ़ रही है, लेकिन यह मांग मिडिल क्लास से ही है जिसकी जेबें खाली हैं। जनगणना और सर्वेक्षण भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि मिडिल क्लास के अपने सपने और अरमान होते हैं, और उनके बच्चों की आंखों में ख्यालों का आसमान होता है। उन्होंने कहा, "1989 में अमेरिका में फिल्म 'हनी, आई श्रंक द किड्स' आई थी, और 2025 में भारत में फिल्म बनेगी 'हनी, आई श्रंक इंडियाज मिडिल क्लास'।"

सांसद राघव चढ्डा ने कहा, 87,762 करोड़ रुपये की अतिरिक्त धनराशि की मांग के लिए विधेयक का विनियोजन किया गया है। लेकिन यह राशि कहां से आएगी और इसका बोझ किस पर डाला जाएगा? उन्होंने कहा, "मिडिल क्लास वो वर्ग है जिससे हर बार वसूली की जाती है। नई संसद बनानी हो या अन्य खर्चे, सबकी भरपाई मिडिल क्लास से की जाती है।"

राघव चड्ढा ने कहा कि रिपोर्ट्स बताती हैं कि मिडिल क्लास की खर्च करने की क्षमता और उपभोग में कमी आई है। उन्होंने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं कि '12 लाख रुपये कर योग्य आय = कोई कर नहीं।' लेकिन यह छूट भी उतनी सरल नहीं है। यदि आप 12 लाख से अधिक कमाते हैं, जैसे कि 12.10 लाख रुपये कमाते हैं, तो आपको स्लैब के अनुसार टैक्स भरना होगा।" 

सरकार के लिए मिडिल क्लास सोने का अंडा देने वाली मुर्गी

सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि भारत की 140 करोड़ आबादी में से केवल 6.68% लोग ही इन छूटों का लाभ उठा पाते हैं। 8 करोड़ भारतीय कर दाखिल करते हैं, लेकिन उनमें से 4.90 करोड़ लोग शून्य आय दिखाते हैं, और केवल 3.10 करोड़ लोग ही टैक्स भुगतान करते हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि टैक्स का असली बोझ मिडिल क्लास पर ही है।

उन्होंने वित्त मंत्री की उस सोच को भी खारिज किया कि इस टैक्स छूट से खपत में बढ़ोतरी होगी। उन्होंने कहा, "यह खपत तब तक नहीं बढ़ेगी, जब तक जीएसटी दरें कम नहीं की जातीं। जीएसटी का भुगतान सभी करते हैं, न कि केवल आयकरदाताओं द्वारा। आम आदमी जब दूध, सब्जी और दवाइयों पर भी टैक्स भरता है, तो उसकी जेब और हल्की होती जाती है।"

राघव चड्ढा ने कहा कि सरकार की नीतियां गरीबों और अमीरों के लिए अलग-अलग हैं। गरीबों को सब्सिडी और योजनाएं मिलती हैं, जबकि अमीरों के कर्ज माफ कर दिए जाते हैं। लेकिन मिडिल क्लास को कुछ नहीं मिलता। न सब्सिडी, न टैक्स में राहत और न ही किसी योजना का लाभ। उन्होंने कहा, "मिडिल क्लास उस मुर्गी की तरह है जो सोने का अंडा देती है, लेकिन सरकार उसे भी खुश नहीं रखती।"

मिडिल क्लास के अरमान टैक्स के बोझ तले दबे

राघव चड्ढा ने कहा कि मिडिल क्लास सबसे बड़ा टैक्सदाता है लेकिन उसे सबसे कम लाभ मिलता है। सैलरी बढ़ती नहीं, बचत नहीं हो पाती, और महंगाई लगातार बढ़ती जाती है। जब खाद्य पदार्थों की महंगाई 8 फीसदी से अधिक बढ़ती है, तो वेतन वृद्धि 3 फीसदी से भी कम होती है।

महंगाई और कर्ज के जाल में फंसा मिडिल क्लास

राघव चड्ढा ने कहा कि मिडिल क्लास सबसे बड़ा टैक्सदाता है लेकिन उसे सबसे कम लाभ मिलता है। सैलरी बढ़ती नहीं, बचत नहीं हो पाती, और महंगाई लगातार बढ़ती जाती है। जब खाद्य पदार्थों की महंगाई 8% से अधिक बढ़ती है, तो वेतन वृद्धि 3% से भी कम होती है।

उन्होंने कहा, "मिडिल क्लास को किताब, कॉपी, दवाइयां, मिठाइयां, कपड़े, मकान हर चीज पर टैक्स देना पड़ता है। मेहनत से कमाई गई हर चीज पर टैक्स लगाया जाता है। मिडिल क्लास के अरमान भी टैक्स के बोझ तले दब जाते हैं। आय स्थिर है, लेकिन खर्चे लगातार बढ़ते जा रहे हैं। बच्चों की शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य खर्च तक, हर मोर्चे पर मिडिल क्लास संघर्ष कर रहा है।"

उन्होंने आगे कहा कि मिडिल क्लास के लोग कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं। "पूरी जिंदगी काम करने के बाद भी 2BHK घर खरीदने के लिए मिडिल क्लास को 20-25 साल के कर्ज में डूबना पड़ता है। सैलरी 7 तारीख को आती है, लेकिन मकान मालिक 1 तारीख को किराया मांगता है। बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए भी कर्ज लेना पड़ता है, और स्वास्थ्य आपातकाल के समय तो सोना तक गिरवी रखना पड़ता है। यह स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है।" 

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि FMCG कंपनियों जैसे नेस्ले इंडिया की ग्रोथ वर्षों में सबसे धीमी रही है, क्योंकि मिडिल क्लास अब खर्च नहीं कर रहा है। "सस्ती चीजों की मांग गिर गई है, लोग अब खर्च करने से बच रहे हैं।"

भारतीय रेलवे जनता से वसूल रही प्रीमियम किराया, लेकिन सुविधाएं जीरो 

रेलवे की स्थिति पर भी राघव चड्ढा ने सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि रेलवे में सुविधाएं घटती जा रही हैं, जबकि किराया बढ़ता जा रहा है। वंदे भारत जैसी महंगी ट्रेनों में आम आदमी यात्रा नहीं कर सकता और बुजुर्गों की सब्सिडी भी बंद कर दी गई है। सांसद राघव चड्ढा ने आरोप लगाया कि जनता से प्रीमियम किराया वसूला जा रहा है, लेकिन सुविधाओं में कोई सुधार नहीं हुआ है। वंदे भारत और बुलेट ट्रेन जैसी महंगी परियोजनाएं केवल अमीरों के लिए हैं।

उन्होंने रेलों की रफ्तार पर बात करते हुए कहा, दुनिया भर में जब ट्रेनों की स्पीड बढ़ रही है, लेकिन भारतीय रेलवे की रफ्तार घटती जा रही है। वंदे भारत की स्पीड भी घटा दी गई है। जबकि किराया 2013-14 के 0.32 रुपये प्रति किलोमीटर से बढ़कर 2021-22 में 0.66 रुपये हो गया है, जो 107 फीसदी की वृद्धि है। वंदे भारत जैसी महंगी ट्रेनें खाली चल रही हैं क्योंकि आम आदमी के लिए ये ट्रेनें अब किफायती नहीं रहीं। सरकार ने दावा किया था कि 'हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई यात्रा करेगा,' लेकिन अब रेल यात्रा भी आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही है।

सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि आम आदमी मजबूरी में ही रेलवे का रुख करता है, लेकिन रेल मंत्री को रेल से ज्यादा रील्स में दिलचस्पी है। उनका ध्यान सोशल मीडिया पर व्यूज और लाइक्स पर है, न कि यात्रियों की असल समस्याओं पर।

उन्होंने कहा, 3AC और 2AC को 'लक्ज़री' माना जाता था, लेकिन अब इनकी हालत जनरल डिब्बों से भी खराब हो गई है। टिकट लेने के बावजूद यात्रियों को सीट मिलने की कोई गारंटी नहीं है। ट्रेनों में भीड़ इतनी बढ़ गई है कि लोग आलू की बोरियों की तरह एक-दूसरे पर ठुंसे रहते हैं। शौचालय में जगह मिलना भी अब सौभाग्य की बात हो गई है। कंबल और चादरें गंदी हैं, जिनसे दुर्गंध आती है। प्लेटफॉर्म पर गंदगी, गंदा पानी, और खाने में कीड़े-मकोड़े आम शिकायतें बन चुकी हैं। पिछले दो वर्षों में स्वच्छता संबंधी शिकायतों में 500 फीसदी की वृद्धि हुई है।

टिकट बुकिंग पर बोलते हुए राघव चड्ढा ने कहा, टिकट बुक करना मुश्किल हो गया है, जिससे लोग थर्ड-पार्टी ऐप्स का सहारा लेते हैं, जो भारी कमीशन वसूलते हैं। टिकट कैंसिल करने पर भी यात्रियों से भारी शुल्क लिया जाता है। प्लेटफॉर्म टिकट और स्टेशन पर मिलने वाला खाना महंगा हो चुका है। बिसलेरी की जगह नकली पानी बेचा जा रहा है और खाने में घटिया सामग्री का उपयोग हो रहा है।

उन्होंने सरकार से सवाल किया कि 140 करोड़ लोगों में से कितने लोग बुलेट ट्रेन और वंदे भारत जैसी महंगी ट्रेनों में यात्रा कर सकते हैं? अगर 80 करोड़ भारतीयों को मुफ्त राशन देना पड़ता है, तो वही लोग 2,000-3,000 रुपये के टिकट कैसे खरीद पाएंगे? जिनकी महीने भर की कमाई ही 8,000-10,000 रुपये है, वे इतनी महंगी ट्रेन यात्रा कैसे कर पाएंगे?

रेलवे बुजुर्गों को फिर से दे सब्सिडी

सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि देश को कुछ बुलेट ट्रेनों की नहीं, बल्कि हजारों किफायती सामान्य ट्रेनों की जरूरत है। महंगाई और बेरोजगारी के इस दौर में लोग सस्ती यात्रा चाहते हैं, न कि महंगी हाई-स्पीड ट्रेनें। 2020 में रेलवे ने बुजुर्गों की यात्रा सब्सिडी बंद कर दी, जिससे 150 मिलियन सीनियर सिटिजंस प्रभावित हुए। राघव चड्ढा ने सवाल उठाया कि क्या हमारी रेलवे अब इतनी निर्मम हो गई है कि बुजुर्गों की सूखी हड्डियों को निचोड़कर पैसा कमाना पड़ रहा है? रिटायरमेंट के बाद बुजुर्गों का सपना होता है तीर्थ यात्रा करने का, लेकिन सरकार ने उनसे ये सुविधा भी छीन ली। 

उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि बुजुर्गों के साथ नाइंसाफी न करें। बुजुर्गों की सब्सिडी को फिर से शुरू किया जाए, ताकि वे अपने जीवन के आखिरी वर्षों में सम्मानपूर्वक यात्रा कर सकें। जब ये बुजुर्ग तीर्थ यात्रा करेंगे, तो वे आपके लिए भी दुआ करेंगे।

सांसद राघव चढ्डा ने रेल हादसों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, हमारे रेल मंत्री को रेलवे और जनता की सुरक्षा की कोई फिक्र नहीं है। रेल मंत्री 'कवच सिस्टम' की बात करते हैं, मगर हर हफ्ते कोई न कोई रेल दुर्घटना हो ही जाती है। पहले भारतीय रेलवे को सुरक्षित यात्रा का पर्याय माना जाता था, लेकिन आज कोई गारंटी नहीं है कि आप जहां जाना चाहते हैं वहां सुरक्षित पहुंच भी पाएंगे। पिछले 5 वर्षों में 200 से अधिक रेल दुर्घटनाओं में 351 लोगों की जान गई और 1000 से अधिक लोग घायल हुए। बालासोर रेल दुर्घटना (जून 2023) में 293 लोग मारे गए और 1100 से ज्यादा लोग घायल हुए, लेकिन जांच और कार्रवाई के नाम पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। 

रेल सुरक्षा के नाम पर जो टैक्स आम आदमी से वसूला जाता है, उसका उपयोग सुरक्षा संसाधन बढ़ाने में नहीं बल्कि बड़े अधिकारियों के लिए लक्जरी सोफे और फुट मसाजर खरीदने में किया जा रहा है। 

भारतीय प्रवासियों की दुर्दशा पर चुप क्यों है सरकार

104 भारतीयों को अमेरिका से निर्वासित किए जाने की घटना का जिक्र करते हुए राघव चड्ढा ने कहा, "भारतीयों को हवाई जहाज में हथकड़ियों और बेड़ियों में बांधकर लाया गया। यह मानवता के खिलाफ है। सरकार को इस पर कड़ा विरोध जताना चाहिए था, लेकिन हमारे विदेश मंत्रालय ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।" वहीं, कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो ने जब सुना कि अमेरिका की सेना प्रवासियों से भरे विमान के साथ आ रही है, तो उन्होंने विमान को उतरने से मना कर दिया। इसके बजाय, वह स्वयं विमान पर चढ़ गए और कोलंबिया में ‘सम्मानजनक जीवन’ का आश्वासन दिया।

उन्होंने कहा कि इन प्रवासियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया, उन्हें 40 घंटे तक बेड़ियों में बांधकर रखा गया, वॉशरूम जाने की अनुमति भी नहीं दी गई और कई बार खाने और पानी के लिए भी मना किया गया। यह न केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों के भी खिलाफ है।

उन्होंने भारत की प्रतिक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा, विदेश मंत्रालय ने नाराजगी जताने के लिए अमेरिकी राजदूत को तलब क्यों नहीं किया? भारत ने अपने नागरिकों को सम्मानपूर्वक वापस लाने के लिए विमान क्यों नहीं भेजा? वहीं, स्वीडन, डेनमार्क, नॉर्वे और ब्रिटेन जैसे देशों के नागरिकों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों नहीं होता?

ट्रंप की नीतियों से खतरे में पड़ीं लाखों नौकरियां 

राघव चड्ढा ने अमेरिका में ट्रम्प प्रशासन की नीतियों का हवाला देते हुए कहा कि एच-1बी वीजा प्रतिबंध और टैरिफ की वजह से भारतीय पेशेवरों और उद्योगों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय आईटी निर्यात, फार्मास्युटिकल्स, और ऑटोमोबाइल सेक्टर पर अमेरिकी टैरिफ से भारी नुकसान हो रहा है, जिससे लाखों नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं।     एच-1बी वीजा प्रतिबंध से सबसे ज्यादा प्रभावित भारतीय होंगे। 2023 में कुल 3.86 लाख एच-1बी आवेदनों में से 72% आवेदन भारतीयों के थे। इससे भारतीय प्रोफेशनल्स की बड़ी संख्या में नौकरियां चली जाएंगी। इससे अनुमानित 0.5 मिलियन भारतीयों के अमेरिका में नौकरी जाने की संभावना है। वहीं, एच-1बी वीजा की लागत बढ़ने के कारण भारतीय आईटी कंपनियों को स्थानीय कर्मचारियों को ज्यादा वेतन पर नियुक्त करना पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि ट्रंप की नीतियों से टेक्सटाइल सेक्टर भी इससे अछूता नहीं रहेगा। भारतीय परिधान निर्यात पर 15-25% टैरिफ लगने से प्रतिस्पर्धा में गिरावट आएगी, और 2023 में $8.4 बिलियन के निर्यात में कमी की आशंका है। फार्मास्युटिकल सेक्टर में भी 25% टैरिफ से अमेरिका को जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति प्रभावित होगी, जिससे गुजरात, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में 1.5 लाख नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। 

ऑटोमोबाइल उद्योग पर भी 25% टैरिफ से $14 बिलियन के व्यापार को नुकसान पहुंचेगा, और लगभग 3 लाख नौकरियां प्रभावित होंगी। प्रवासी भारतीयों के लिए भी मुश्किलें बढ़ेंगी। अमेरिका में अवैध प्रवासियों पर सख्ती और ग्रीन कार्ड आवेदनों में देरी से कई भारतीयों को नौकरी गंवानी पड़ सकती है। इससे भारत में बेरोजगारी दर और बढ़ेगी, और अमेरिका से लौटने वाले भारतीयों को पुनः एकीकरण में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट से भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हो सकता है। आईटी कंपनियों के राजस्व में गिरावट से भारत के कॉर्पोरेट टैक्स संग्रह में $2500 से $3000 मिलियन तक की कमी आ सकती है। 

वहीं, इससे राजनीतिक स्तर पर भी दबाव बढ़ेगा। अमेरिका भारत को अधिक रक्षा उपकरण खरीदने के लिए मजबूर कर सकता है और रूस से रक्षा समझौतों पर रोक लगाने का दबाव भी डाल सकता है। साथ ही, अमेरिका स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए दी जाने वाली $200 मिलियन की मदद भी बंद कर सकता है। 

अप्रत्यक्ष करों का प्रभाव और जीएसटी का बोझ

राघव चड्ढा ने कहा कि भारत की 140 करोड़ आबादी में से केवल 6.68 फीसदी लोग ही इन छूटों का लाभ उठा पाते हैं। 8 करोड़ भारतीय इनकम टैक्स दाखिल करते हैं, लेकिन उनमें से 4.90 करोड़ लोग शून्य आय दिखाते हैं, और केवल 3.10 करोड़ लोग ही टैक्स भुगतान करते हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि टैक्स का असली बोझ मिडिल क्लास पर ही है।

उन्होंने वित्त मंत्री की उस धारणा को भी खारिज किया कि इस टैक्स छूट से खपत में वृद्धि होगी। उन्होंने कहा, "यह खपत तब तक नहीं बढ़ेगी, जब तक जीएसटी दरें कम नहीं की जातीं। जीएसटी का भुगतान सभी करते हैं, न कि केवल आयकरदाताओं द्वारा। आम आदमी जब दूध, सब्जी और दवाइयों पर भी टैक्स भरता है, तो उसकी जेब और हल्की होती जाती है।"

रुपये की घटती वैल्यू से बढ़ रही महंगाई

राघव चड्ढा ने रुपये के गिरते मूल्य पर भी चिंता जताई। एसबीआई की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार रुपये में 5 फीसदी की गिरावट से मुद्रास्फीति में 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी होती है। उन्होंने आगे कहा, "मई 2014 में डॉलर के मुकाबले रुपया 58.80 रुपये था, जो फरवरी 2025 में गिरकर 86.70 रुपये हो गया है। रुपये के कमजोर होने से पेट्रोल-डीजल महंगे हो गए हैं, जिससे हर चीज की कीमतें बढ़ रही हैं।" उन्होंने कहा कि रुपये को स्थिर करने के लिए आरबीआई ने 77 अरब डॉलर के अपने रिजर्व बेचे हैं, जिससे अक्टूबर 2024 में 701 अरब डॉलर से घटकर जनवरी 2025 में 624 अरब डॉलर रह गया है।

उन्होंने बताया कि भारत अपनी जरूरत का 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है, और रुपये के कमजोर होने से ईंधन के दाम बढ़ने का सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है। रुपये की घटती वैल्यू से खाद्य मुद्रास्फीति, ऊर्जा मुद्रास्फीति, स्वास्थ्य सेवा मुद्रास्फीति, शिक्षा मुद्रास्फीति और इलेक्ट्रॉनिक्स मुद्रास्फीति जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं, जिनका सीधा असर मिडिल क्लास पर पड़ता है। 

इलेक्ट्रॉनिक्स मुद्रास्फीति की बात करते हुए सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि भारत अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक्स और उनके कंपोनेंट्स का आयात करता है, जिसका निपटान यूएस डॉलर में किया जाता है। रुपये के अवमूल्यन के साथ स्मार्टफोन, लैपटॉप और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स की लागत लगातार बढ़ रही है। भारत में निर्मित इलेक्ट्रॉनिक्स भी महंगे हो रहे हैं क्योंकि आयातित घटकों की लागत बढ़ गई है। ऑटोमोबाइल, उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुएं और विमानन क्षेत्र भी डॉलर आधारित व्यय के कारण 5-10 फीसदी मूल्य वृद्धि का सामना कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि सैद्धांतिक तौर से कमजोर रुपये से निर्यात बढ़ना चाहिए, लेकिन भारतीय निर्यात में गिरावट आई है। चीन ने अपने युआन का अवमूल्यन कर निर्यात को बढ़ावा दिया है, जबकि भारत में व्यापार घाटा बढ़कर 202.42 बिलियन डॉलर हो गया है। विदेशी निवेशक भी "भारत बेचो, चीन खरीदो" की रणनीति अपना रहे हैं। नवंबर 2024 में 2 बिलियन डॉलर का निवेश भारत से निकाला गया है।

उन्होंने कहा, 2013 में एक प्रमुख भाजपा नेता और सांसद ने कहा था, "जब यूपीए सत्ता में आया था, तब डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत राहुल गांधी की उम्र के बराबर थी। आज यह सोनिया गांधी की उम्र के बराबर है और बहुत जल्द यह मनमोहन सिंह की उम्र को छू लेगा। यही स्थिति महंगाई को और बढ़ाएगी और आम आदमी को परेशान करेगी।"

सांसद राघव चड्ढा ने आगे कहा, पहले कुछ लोग रुपये के गिरने पर चिंता करते थे, मगर अब सरकार का इस पर कोई ध्यान नहीं है। "मैं उनसे पूछना चाहता हूं अब कोई ध्यान क्यों नहीं देता? रुपये गिरने पर ज्ञान क्यों नहीं देता? रुपया का गिरना तो हर दिन जारी है, मगर अब कोई बयान क्यों नहीं देता? 

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